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आगरा हेरिटेज वॉक के साथ मना रंग - ए - सूलहकुल का पहला दिन । कविता पाठ और बांसुरी वादन के साथ और मीठी हुई सुबह

आज के इस खूबसूरत आगाज़ के लिए बहुत शुक्रिया , मैंने शहर को आज ज़िंदा शक्ल में पाया।
सुबह हुई तो आम पर दोपहर तक आते आते दिन खास हो गया।
ये लफ्ज़ उनलोगो के ज़ुबान पर थे जब वो आगरा हेरिटेज वॉक के लिए आगरा की सड़कों पर निकले ।
आगरा हेरिटेज वॉक का कलीम, नेहा और अनल की अगुवाई में आज कारवां ए सुलहकुल के शक्ल में रंग ए सुलहकुल का बहुत शानदार आगाज़ हुआ। NH2, दिल्ली आगरा राजमार्ग से सटे स्मारक को उड़ती हुई नजर डाल कर आगे बढ़ जाने वाले लोगों को एक बार इस बात को पूरा पढ़ना चाहिए कि ये उस विचार को सहेजने वाले अकबर का मकबरा है जिसने सुलहकुल को हर विचार, हर स्थापत्य (अर्क्टिटेक्नोलॉजी) और हर वर्ग में सामंजस्य पैदा करने वाले लोगों को साथ रखने की बात की ।
सिकन्दरा के बाई और कांच महल में थे जहां अनल लोगो को राग भैरवी में बाँसुरी सुना रहे थे और साझे पन के मतलब को ध्वनि में बदल रहे थे। बाबर और अकबर के बीच की परंपरा के साथ साथ लोग साझे विचार के उस राष्ट्र की विशालता और विविधता से सम्मोहित होकर उसे अपना कर लेने की या उसके जैसे हो जाने की कोशिश बता रहे थे। सिकन्दरा के सहन में पहुंच कर बात विविधता और सामूहिकता की होने लगी और आशीष मोहन ने अपनी कविता खिलौने वाला सुनाई फिर किशोर जी ने जो जितेंद्र जी के बहुत अच्छे मित्रों में से एक रहे हैं विविधता उत्पन्न साम्यता को सामूहिक सामूहिक प्रयास का उपक्रम बताया साथ ही नेहा ने जोड़ा कि यदि हम बेहतर और अलग विचारों को जगह देते हैं तो किसी भी रूप में चाहे वह स्थापत्य हो चाहे वह कला हो या जीवन शैली हो उसमें सुलहकुल का सपना पूरा होता दिखता है राम शर्मा ने 2 शब्दों को बेहतर समझने में मदद की, जिहाद को उन्होंने अपनी चीजों को सुरक्षित रखने और किसी भी सपने को पूरा करने के जुनून से जोड़ा। आशीष मोहन की कविता के बाद हम अकबर की समाधि की तरह बढ़े। प्रोग्राम का संचालन कर रहे दो विजय शर्मा ने बताया कि  अंदर पहुंचकर लगा जैसे हम किसी सूफी संत की समाधि के पास खड़े हैं उस जगह की शांति ने हमको अंदर तक उस भिगो कर दिया हालांकि उस समाधि के आसपास उकेरी गए भित्ति चित्रों को सैकड़ों साल पहले एक राजनीति के तहत ब्रिटिश काल में ही खत्म कर दिया गया और सुलहकुल की निशानियां को मिटाने की नाकाम कोशिश की गई लेकिन वहां पहुंचते ही आपको उस राजनीति की साजिश का आभास हो जाता है और उनकी वह कोशिश नाकाम हो जाती है। बाहर आकर हमने देखा किस तरह संरक्षण के नाम पर पीले रंग से दीवारों को पोत दिया गया है जिससे हम समझ सकते हैं कि कैसे चीजों को खत्म करने की लगातार और सुनियोजित कोशिश हो रही है। यह बेहतर होता जैसा कि नेहा ने कहा कि हम इस पीले चूने को ना पोत कर भित्ति चित्रों के फोटो को वहां टांग देते हैं और लोगों को यह बताते कि इस जगह क्या था और अब क्या है। इसके साथ ही हम बाहर आते आते यह समझ चुके थे कि उस वक्त की जरूरत और राजनीति नहीं सुलहकुल के विचार को जन्म दिया होगा वरना धर्म और राजनीति का इतना संयोजित रूप जो अकबर ने एक स्वप्न के रूप में विकसित किया था वह अब तक जिंदा ना रह पाता और हम उसके बारे में बात नहीं कर रहे होते, साथ ही यह भी समझ में आया कि हम विचारों की विभिन्नता को विपक्ष मान लेते हैं किंतु ऐसा नहीं है वह विविधता हमारे विचारों और संयोजित प्रयासों का एक दूसरा पहलू होती है  सिकंदरा के आंगन से बाहर आते आते हम दोस्ती मोहब्बत खुलूस और तमाम शब्दों से रूबरू हो रहे थे दीवारों पर खरोच कर लिखे गए प्रेमी युगलों के नाम और उनके निशान इस बात की गवाही थे कि इस मुल्क में प्रेम करने वाले लोगों के लिए अपनी भावनाओं को व्यक्त करना कितना मुश्किल होता है कि वह छिपकर कोने में अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की असफल कोशिश करते हैं हालांकि कुछ लोग इस को बुरी आदत की तरह लेते हैं लेकिन यह आदत क्यों विकसित हुई, किसने विकसित की किन परिस्थितियों में हुई इस पर विचार करना हम जरूरी नहीं समझते  , जाहिर है आचरण की शुद्धता और सभ्यता हमको ऐसा करने से रोक देती हैं और इस तरह से हम सभ्यता को एक और विकृत रूप दे देते हैं । खैर इसी विकृत सभ्यता को अपनी कविता में व्यक्त किया उत्कर्ष चतुर्वेदी ने, सिकंदरा के पीछे सहन में बैठकर खूबसूरत अंदाज में बांसुरी के एक छोटे से पीस के साथ अनल ने बजाया ,वह कविता और खूबसूरत हो चली थी हम उसमें सुलहकुल को एक नए रूप में महसूस कर रहे थे और उसी भाव में डूबते उतरते हम पूरी परिक्रमा करते हुए बाहर आ रहे थे। सुबह 8:15 पर जो अपरिचित चेहरे एक दूसरे को देखकर औपचारिक मुस्कान ही कर पा रहे थे वह बाहर आते आते एक दूसरे के साथ जोर से ठहाके लगा रहे थे और अपने अनुभव शेयर कर रहे थे सुलहकुल के मायने को छोटी सी सुबह की किरण में इससे बेहतर हम कैसे जी सकते हैं , आप ही बताइए  ।इसमें हमारे साथ मुदित शर्मा अभिजीत शर्मा ,राम  ऋतु सैनी , रोहित ,मनीष सिंह के अतिरिक्त किशोर चतुर्वेदी, रमेश पंडित, नीना चतुर्वेदी, गुनगुन, अंशिका, नीतू दीक्षित चिन्मय गोस्वामी, नरेश कुमार, संदीप बघेल ,शुभम जाखड़ और आशीष मोहन भी साथ थे। इसके बाद अगर हम आगरा के मशहूर नाश्ते बेड़ई और जलेबी से वंचित रह जाते तो शायद यह सुबह अधूरी ही रहती और हमारी इस ख्वाहिश को नीतू दीक्षित ने पूरा कर दिया हमने बाहर निकल कर साथियों के साथ बेड़ई जलेबी का नाश्ता किया और फिर कल दूसरे दिन सुलहकुल की नई गतिविधि को संयोजित करने के साथ विदा ली।   मैं विजय शर्मा एक और खूबसूरत सुबह का गवाह था और इस तरह कारवां ए सुलहकुल ने रंग सुलहकुल की एक नई सुबह की शुरुआत कर दी ।

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